गोगाजी के गुरू श्री गोरख नाथ
"सोहम जिनकी शक्ति है, शुन्य जिनकी माता है, अवगत जिनके पिता हैं, अभय जिनका पंथ है, अचल जिनकी पदवी हैं, निरंजन जिनका गोत्र हैं, विहंगम जिनकी जाति हैँ यही पहचान गुरू गोरखनाथ जी की हैं" जय हो शिव गोरक्षनाथ की !!!
!! गुरु गोरख नाम घट घट व्यापी, जो इसकी महिमा को समझे काहे की उदासी !!
!! श्री भगवान जो नाथ पंथ के संस्थापक, नाथ पंथ के गुरु, नाथ शिरोमणि हैं वो श्री शंभुजति गुरु गोरक्षनाथ हैं !!
!! अलख निरंजन !!
!! ओम शिवगोरक्ष नारायण !!
!! ओम श्री श्री १०८ हट हट योगचार्या शंभुजाति गुरु गोरक्षनाथ नामो नमः !!
!! हे! गुरु माचिंदरनाथ, जिस प्रकार मेरे गुरु श्री गुरु गोरखनाथ महाराज ने आपको परमातमा स्वरूप माना है और सिर्फ़ आपकी ही भक्ति करी है ! जिस प्रकार, हे! गुरु माचिंदरनाथ, आपने अपने चेले श्री शंभुजाति गुरु गोरखनाथ पे अपना आशीर्वाद सदा बनाए रखा है उसी प्रकार मुझे भी हे! गुरु माचिंदरनाथ आशीर्वाद दें, मेरे गुरु श्री शंभुजाति गुरु गोरखनाथ अपना आशीर्वाद सदा मुझपे बनाए रखें, मैने पूर्ण प्रेम भाव से सिर्फ़ श्री शंभुजाति गुरु गोरखनाथ को ही परमातमा स्वरूप माना है !!
गोगामेडी व ददरेवा स्थित गोगाजी का मंदिर साम्प्रदायिक सद्भाव
का अनूठा प्रतीक है। मंदिर में एक हिन्दू व एक मुस्लिम
पुजारी खडे रहते है। इसी कारण यहां सभी धर्मो मे विश्वास
करने वाले श्रद्धालू बिना किसी भेद के एक साथ आकर शीश
नवाते है। मेले के दौरान चारों तरफ से उमड रहे जन सैलाब के
बीच अलग अलग समूहों से उठ -उठ कर गूंजती ‘‘जाहर वीर ‘‘ ‘‘
व ‘‘ ‘‘ गोगापीर ‘‘ के जयकारों की गूंज से सृजित भक्तिमय
माहौल का साक्षात करें तो दरअसल धर्म,
जाति या सम्प्रदाय जैसी बातें बेमानी हो जाती हैं। बस
ऐसा प्रतीत होता है कि आराध्य देव वीर गोगाजी तथा गुरु
गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की कोई अविरल
धारा बहती जा रही है।
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को सांपों के
देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान,
गुग्गा, जाहिरवीर व जाहिर पीर के नामों से पुकारते हुए अपने
भावों का इजहार करते है। इनका अवतरण गुरु गोरक्षनाथ
की कृपा से हुआ माना जाता है। ऐसे में मेले में पहुंचने वाले
भक्तजन सर्वप्रथम गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश
नवाते है फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक लगाते है।
भाद्रपद श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिनकी पुण्यतिथि नवमी ही ‘श्री गोगानवमी’ Guga Navami नामसे प्रसिद्ध है। इसी तिथिको श्रीजाहरवीर गोगाजीका जन्मोत्सव श्रद्धालु भक्तोंद्वारा अपार भक्ति-भावसे मनाया जाता है।
यह व्यापक व्रत नहीं है। लोकाचारमें इसका प्राधान्य है। इसके लिये कुम्हारलोग काली मिट्टीकी एक मूर्ति बनाते हैं। वह वीर पुरुषकी होती है। उसे भाद्रपद कृष्ण नवमीको प्रातः सद्गृहस्थोंके घरोंमें ले जाते हैं और पूजन करवाके ले आते हैं। देखा जाता है कि अधिकांश गृहस्थ उस अश्वारुढ मूर्तिको अपूप और श्रावणीका रक्षासुत्र (राखी) अर्पण करते हैं।
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