शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

ददरेवा के कायमखानी

ददरेवा के कायमखानी

राजस्थान के इतिहासकार मुंहता नेणसी ने अपनी ख्यात में लिखा है कि हिसार के फौजदार सैयद नासिर ने ददरेवा को लूटा. वहां से दो बालक एक चौहान दूसरा जाट ले गए. उन्हें हांसी के शेख के पास रख दिया. जब सैयद मर गया तो वे बहलोल लोदी के हुजूर में भेजे गए. चौहान का नाम कायमखां तथा जाट का नाम जैनू रखा. जैनू के वंशज (जैनदोत) झुंझुनु फतेहपुर में हैं. कायमखां हिसार का फौजदार बना. चौधरी जूझे से मिलकर झुंझुनूं क़स्बा बसाया. कायमखां ददरेवा के मोटेराव चौहान का पुत्र था. कायमखां के वंशज कायमखानी कहलाते हैं. [1][2]
ऐतिहासिक तथ्यों से इस बात की पुष्टी होती है. महाकवि जान, रासो के रचयिता, कायमखां के मोटेराव चौहान का पुत्र होना, ददरेवा का निवासी होना आदि तथ्यों का विस्तार से उल्लेख करते हैं. यह विवेचना आवश्यक है कि मोटेराव चौहान का कौनसा समय था तथा कायम खां किस समय मुसलमान बना. ददरेवा के चौहान साम्भर के चौहानों की एक शाखा थे. लम्बी अवधी से इनका ददरेवा पर अधिकार था और इनकी उपाधी राणा थी . चौहानों में राणा की उपाधी दो शाखाएं प्रयुक्त करती थी. पहली मोहिल और दूसरी चाहिल. ददरेवा के चौहान संभवत: चाहिल शाखा के थे. गोगाजी जो करमचंद के पूर्वज थे, के मंदिर के पुजारी आज भी चाहिल हैं. मोटे राव चौहान गोगाजी का वंशज था. दशरथ शर्मा गोगाजी का समय 11वीं शदी मानते हैं. उनके अनुसार वे महमूद गजनवी से युद्ध करते हुए सना 1024 में बलिदान हुए. रणकपुर शिलालेख में भी गोगाजी को एक लोकप्रिय वीर माना है. यह शिलालेख वि. 1496 (1439 ई.) का है.[3]
यह प्रसिद्ध है कि गोगाजी से 16 पीढ़ी बाद कर्मचंद हुआ. इसी प्रकार जैतसिंह से उसे सातवीं पीढ़ी में होना माना जाता है. बांकीदास ने गोगाजी को जेवर का पुत्र होना लिखा है. गोगाजी के बाद बैरसी , उदयराज , जसकरण , केसोराई, विजयराज, मदनसी, पृथ्वीराज, लालचंद, अजयचंद, गोपाल, जैतसी, ददरेवा की गद्दी पर बैठे. जैतसी का शिलालेख प्राप्त हुआ है जो वि.स. 1270 (1213 ई.) का है. इसे वस्तुत: 1273 वि.स. का होना बताया है. जैतसी के बाद पुनपाल, रूप, रावन, तिहुंपाल, मोटेराव, यह वंशक्रम रासोकार ने माना है. जैतसी के शिलालेख से एक निश्चित तिथि ज्ञात होती है. जैतसी गोपाल का पुत्र था जिसने ददरेवा में एक कुआ बनाया. गोगाजी महमूद गजनवी से 1024 में लड़ते हुए मारे गए थे. गोगाजी से जैतसी तक का समय 9 राणाओं का प्राय: 192 वर्ष आता है जो औसत 20 वर्ष से कुछ अधिक है. जैतसी के आगे के राणाओं का इसी औसत से मोटेराव चौहान का समय प्राय: 1315 ई. होता है जो फिरोज तुग़लक के काल के नजदीक है. इससे स्पस्ट होता है कि कायम खां फीरोज तुग़लक (1309-1388) के समय में मुसलमान बना. [4]
तारीखी फीरोजशाही से ज्ञात होता है कि बंगाल से लौटने के बाद बंगाल की लड़ाई के दूसरे साल हिसार फीरोजा की स्थापना की. यह 1354 में माना जा सकता है. हिसार में सुल्तान ने एक दुर्ग बनाया और अपने नाम पर इस नगर का आम हिसार फीरोजा रखा. इसके पूर्व हिसार के आसपास का क्षेत्र हांसी के शिंक (डिविजन ) में था. इस शिंक का नाम हिसार फीरोजा कर दिया और हांसी, अग्रोहा, फतेहाबाद, सरसुती, सालारुह, और खिज्राबाद के जिले इसमें सामिल कर लिये. इसके पास ही दक्षिण पश्चिम में शेखावाटी का भूभाग था. कायम खां यद्यपि धर्म परिवर्तन कर मुसलमन हो गया था पर उसके हिन्दू संस्कार प्रबल थे. उसका संपर्क भी अपने जन्म स्थान के आसपास की शासक जातियों से बना रहा था. कायम खां के सात स्त्रियाँ थी जो सब हिन्दू थी. [5]
कायमखां अपने जीवन के अंतिम दिनों में हिसार फीरोजा का हाकिम रहा था. यह क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था तथा अपना जन्म स्थान ददरेवा भी निकट था जहाँ अब भी चौहान राज कर रहे थे. कायमखां का शेखावाटी से निकट संपर्क था यह बात खंडेले के शासकों के वर्ग में उसकी शादी से जाना जा सकता है. इसी संपर्क के करण बाद में उसके पुत्र हिसार से विस्थापित होकर इधर चले आये. शेखावाटी प्रकाश के अनुसार कायम खां के 5 पुत्र थे - महमदखां, ताजखां, क़ुतुबखां, अबूखां, और इख्तियारखां. 'फतेहपुर परिचय' में उसके 6 लड़के होने की बात कही है. उपरोक्त पांच के अतिरिक्त मोहनखां का नाम जोड़ा गया है. चौथा पुत्र क़ुतुबखां बारुवे में जाकर बस गया और आस-पास के स्थानों पर उसने अधिकार कर लिया. बारुआ झुंझुनूं जिले का स्थान है जो नवलगढ़ से 11 किमी दूर दक्षिण में है. [6]


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