शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

गोगाजी लोकदेवता

गोगाजी लोकदेवता

गोगादेव के जन्मस्थान ददरेवा, जो राजस्थान के चुरू जिले की राजगढ़ तहसील में स्थित है। यहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं । नाथ परम्परा के साधुओं के ‍लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है। दूसरी ओर कायमखानी मुस्लिम समाज के लोग उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था।लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास ददरेवा में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्‍था टेककर मन्नत माँगते हैं।
Location of Gogamedi in Hanumangarh district
हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं।गोगा पीर व जाहरवीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं। प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव-गाँव में गोगा वीर गोगाजी का आदर्श व्यक्तित्व भक्तजनों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है।विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है। इतिहासकारों के अनुसार गोगादेव अपने बेटों सहित मेहमूद गजनबी के आक्रमण के समय सतलुज के मार्ग की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। हवाई अड्डा लगभग 250 किमी पर स्थित है।

लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगत पंचमी (सोमवार) को श्रद्धालुओं की संख्या में और बढ़ोतरी हुई। मेले में राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है।

गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से

गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया।

बुरडक गोत्र से संबंध

बुरडक गोत्र के बडवा (भाट) श्री भवानीसिंह राव (फोन-09785459386) की बही के अभिलेखों में ददरेवा का सम्बन्ध बुरड़क गोत्र के इतिहास से है. अजमेर के चौहान वंश में राजा रतनसेण के बिरमराव पुत्र हुए. बिरमराव ने अजमेर से ददरेवा आकर राज किया. संवत 1078 (1021 AD) में किला बनाया. इनके अधीन 384 गाँव थे. बिरमराव की शादी वीरभाण की बेटी जसमादेवी गढ़वाल के साथ हुई. इनसे तीन पुत्र उत्पन्न हुए:
  • 1. सांवत सिंह - सांवत सिंह के पुत्र मेल सिंह, उनके पुत्र राजा धंध, उनके पुत्र इंदरचंद तथा उनके पुत्र हरकरण हुए. इनके पुत्र हर्ष तथा पुत्री जीण उत्पन्न हुयी. जीणमाता कुल देवी संवत 990 (933 AD) में प्रकट हुयी.
  • 2. सबल सिंह - सबलसिंह के बेटे आलणसिंह और बालणसिंह हुए. सबलसिंह ने जैतारण का किला संवत 938 (881 AD) में आसोज बदी 10 को फ़तेह किया. इनके अधीन 240 गाँव थे.
  • 3. अचल सिंह -
सबलसिंह के बेटे आलणसिंह के पुत्र राव बुरडकदेव, बाग़देव, तथा बिरमदेव पैदा हुए.
आलणसिंह ने संवत 979 (922 AD) में मथुरा में मंदिर बनाया तथा सोने का छत्र चढ़ाया.
ददरेवा के राव बुरडकदेव के तीन बेटे समुद्रपाल, दरपाल तथा विजयपाल हुए.
राव बुरडकदेव (b. - d.1000 AD) महमूद ग़ज़नवी के आक्रमणों के विरुद्ध राजा जयपाल की मदद के लिए लाहोर गए. वहां लड़ाई में संवत 1057 (1000 AD) को वे जुझार हुए. इनकी पत्नी तेजल शेकवाल ददरेवा में तालाब के पाल पर संवत 1058 (1001 AD) में सती हुई. राव बुरडकदेव से बुरडक गोत्र निकला.
राव बुरडकदेव के बड़े पुत्र समुद्रपाल के 2 पुत्र नरपाल एवं कुसुमपाल हुए. समुद्रपाल राजा जयपाल के पुत्र आनंदपाल की मदद के लिए 'वैहिंद' (पेशावर के निकट) गए और वहां पर जुझार हुए. संवत 1067 (1010 AD) में इनकी पत्नी पुन्यानी साम्भर में सती हुई.
विवेचना - उपरोक्त विवरण से ददरेवा के चौहान वंश में बुरड़क गोत्र के इतिहास के अवलोकन से यह स्पस्ट होता है कि राव बुरडकदेव (b. - d.1000 AD) महमूद ग़ज़नवी के आक्रमणों के विरुद्ध राजा जयपाल की मदद के लिए लाहोर गए. वहां लड़ाई में संवत 1057 (1000 AD) को वे जुझार हुए. राव बुरडकदेव के बड़े पुत्र समुद्रपाल राजा जयपाल के पुत्र आनंदपाल की मदद के लिए 'वैहिंद' (पेशावर के निकट) गए और वहां पर संवत 1067 (1010 AD) में जुझार हुए.

नरपाल के उदयसिंह और करणसिंह पुत्र हुए तथा पुत्री आभलदे हुई. आभलदे का विवाह संवत 1103 (1046 AD) में रुनिया के गोदारा कर्मसिंह के साथ हुआ. उदयसिंह के पुत्र राजपाल, राव उदणसिंह तथा भरतोजी पैदा हुए. राजपाल के पुत्र अभयपाल, धीरपाल, भोलराव, भीमदेव तथा जीतराव पैदा हुए. राजपाल संवत 1191 (1134 AD) में अजमेर के राजा सोमेसर के प्रधान सेनापति बने.
ददरेवा के चौहान वंश में ही गोगादेव भी अपने बेटों सहित महमूद गजनबी के आक्रमण के समय सतलुज के मार्ग की रक्षा करते हुए वर्ष 1024 में शहीद हो गए.
बुरडकदेव और गोगादेव में सम्बन्ध अनुसंधान का विषय है. अनुमान है की बुरडक वंशावली में बुरडकदेव की तीसरी पीढ़ी में एक उदयसी है जो संभवतः ददरेवा में गोगादेव के उत्तराधिकारी थे.

पहुँच

रेल मार्ग:- जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर तक ट्रेन द्वारा जाया जा सकता है।सड़क मार्ग:- जयपुर देश के सभी राष्ट्रीय मार्ग से जुड़ा हुआ है। जयपुर से सादलपुर और सादलपुर से 15 किमी दूर स्थित गोगाजी के जन्मस्थान तक बस या टैक्सी से पहुँचा जा सकता है।

References

  1. DasharathaSharma: Early Chauhan Dynastied (800-1316 AD), pp.365-366
  2. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.41
  3. Burdak Gotra Ka Itihas
  4. Rao Chhotu Singh Village - Dadia, Tahsil - Kishangargh, District - Ajmer Rajasthan, Phone: 01463-230349, Mob: 09001329120
  5. डॉ मोहन लाल गुप्ता:राजस्थान ज्ञान कोष, वर्ष २००८, राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, पृ. ४७३
  6. देवीसिंह मंडावा:सम्राट पृथ्वीराज चौहान,पृ. 134
  7. डॉ मोहन लाल गुप्ता:राजस्थान ज्ञान कोष, वर्ष २००८, राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, पृ. ४७३
  8. देवीसिंह मंडावा:सम्राट पृथ्वीराज चौहान,पृ. 134
  9. डॉ मोहन लाल गुप्ता:राजस्थान ज्ञान कोष, वर्ष २००८, राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, पृ. ४७३
  10. देवीसिंह मंडावा:सम्राट पृथ्वीराज चौहान,पृ. 134
  11. डॉ मोहन लाल गुप्ता:राजस्थान ज्ञान कोष, वर्ष २००८, राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, पृ. ४७३
  12. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.75-76

2 टिप्‍पणियां:

Man ने कहा…

JAI GOGA DEV KI

Unknown ने कहा…

Jai ho gogaji Maharaj ki