प्रेम से बोलो जय गोगाजी !
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की नवमी गोगा नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन गोगाजी का जन्मोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस अवसर पर बाबा जाहरवीर गोगाजी के भक्तगण अपने घरों में इष्टदेव की थाड़ी बनाकर अखण्ड ज्योति जागरण कराते हैं तथा गोगादेवजी की शौर्य गाथा एवं जन्म कथा सुनते हैं। इस प्रथा को जाहरवीर का जोत कथा जागरण कहते हैं। इस दिन कहीं मेले लगते हैं ओर ददरेवा का तो नजारा ही अलग दीखता है तो कहीं भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। ऐसी मान्यता है कि श्रीगोगादेव भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। ददरेवा बस अड्डे से गोगाजी मंदिर 01 कि .मी . है यहाँ से गोगा भगत टैक्सी या पैदल मंदिर तक जा सकते हकौन थे श्रीगोगादेव महाराज,
किवदंती के अनुसार श्रीगोगादेव का जन्म नाथ संप्रदाय के योगी गोरक्षनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। योगी गोरक्षनाथ ने ही गोगादेवजी की माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था। जिसके प्रभाव से महारानी बाछल से जाहरवीर (श्रीगोगादेव महाराज), पुरोहितानी से नरसिंह पाण्डे, दासी से मज्जूवीर, महतरानी से रत्नावीर तथा बन्ध्या घोड़ी से नीले का जन्म हुआ। इन सभी ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए विधर्मी राजाओं से घोर युद्ध किया जिसमें श्रीगोगादेवजी व नीलाश्व को छोड़कर अन्य वीरगति को प्राप्त हुए। अंत में गुरु गोरक्षनाथ के योग, मंत्र व प्रेरणा से श्रीजाहरवीर गोगाजी ने नीले घोड़े सहित धरती में जीवित समाधि ली। एस्लिय गोगाजी को मुस्लिम भाई भी गोगा पीर के नाम से पुकारते है !
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