भारत देश कृषिप्रधान देश था और है। सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए
उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले
तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है।
साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। सांप को गोगाजी का रूप माना जाता है , साँप के गुण देखने की हमारे पास
गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ
दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।
साँप जैन व बोद्ध धर्म मे पवित्र दिव्य गुणों के होने के रूप मे माना जाता है .
साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता। उसे परेशान करने वाले को या
छेड़ने वालों को ही वह डंसता है। सांप के काटने को राजस्थानी भाषा मे पान लगना बोलते है .साँप प्रभु का भी सर्जन है, वह यदि नुकसान
किए बिना सरलता से जाता हो, या निरुपद्रवी बनकर जीता हो तो उसे मारने का
हमें कोई अधिकार नहीं है। राजस्थान के ददरेवा धाम मे भादों मास मे कोई सांप को नहीं मारता है . मानता है की यहाँ सांप के दिखने पर उसे गोगा मंदिर मे जाने के लिए बोल देने पर सांप चला जाता है .
साँप को सुगंध बहुत ही भाती है। चंपा के पौधे को लिपटकर वह रहता है या
तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता
है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है।
प्रत्येक मानव को जीवन में सद्गुणों की सुगंध आती है, सुविचारों की सुवास
आती है, वह सुवास हमें प्रिय होनी चाहिए।
हम जानते हैं कि साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता। वर्षों परिश्रम
संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता।
हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी। यह शक्ति
किसी पर गुस्सा करने में, निर्बलों को हैरान करने में या अशक्तों को दुःख
देने में व्यर्थ न कर उस शक्ति को हमारा विकास करने में, दूसरे असमर्थों को
समर्थ बनाने में, निर्बलों को सबल बनाने में खर्च करें, यही अपेक्षित है ! (जय ददरेवा -जय गोगाजी)
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