भाद्रपद श्रीकृष्णाष्टमी के दूसरे दिन की पुण्य तिथि नवमी ही "" गोगा नवमी "" नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन वीर गोगाजी का जन्मोत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इनकी जन्मस्थली "" ददरेवा "" नामक स्थान है जो राजस्थान के चूरू जिले की राजगढ़ तहसील में स्थित है। इस दिन गोगाजी के भक्तगण अपने घरों में अखण्डजोत जलाकर जागरण करते हैं और अपने परम्परागत वाद्य यंत्रों की धवनि के साथ गोगाजी की शौर्यगाथा और जन्मकथा का श्रवण करते हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार श्रीगोगाजी महाराज को जाहरवीर, गोगावीर, गुगालवीर, गोगागर्भी ओर जाहरजहरी नाम से भी जाना जाता है। बाबा की पूजा सामग्री में लौंग, जायफल, कर्पूर, गुग्गुल और गाय का घी प्रयोग में लिया जाता है। प्रसाद के रूप में हरी दूब और चने की दाल समर्पित की जाती है और उनकी समाघि पर चंदन चूरा मला जाता है।आजकल भक्तजन प्रसाद के रूप में खील,
मखाना,नारियल और खीर हलवा का भोग लगाते हैं ! भक्तों की मान्यता है कि वे आज भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उनका मार्गदर्शन करते हैं। इसी कारण उन्हें प्रकटवीर भी कहा जाता है।
गोगाजी मंदिर ददरेवा के पुजारी श्री बच्चन सिंह चोहान है ,गोगा भगतो की मान्यता है की पीले वस्त्र पहन कर ददरेवा आने से उनके कष्ट दूर हो जाते है,इसलिए पुरे भादो महीने मे भगत पीले पीले कपड़ों मे नजर आते है, यह नजारा देखते ही बनता है। यहा से पूजा करने के बाद वो लोग गोगामेड़ी जाते है जो ददरेवा से 65किलोमीटर है, जहाँ भगवान गोगाजी की प्राचीन समाधी है गोगामेड़ी धाम राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर तहसील में है !
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