गोगाजी चौहान
गोगाजी महाराज -
राजस्थान रै पांच पीरां में सूं
अेक गोगा पीर। गोगा पीर राजस्थान रा अेकला अैड़ा लोक देवता जिणां री मानता
आखै राजस्थान रै अलावा गुजरात, हरियाणा, पंजाब, हिमाचलप्रदेस, मध्यप्रदेस,
उत्तरप्रदेस इत्याद दूजै राज्यां में ई करीजै। गोगा पीर रौ अेक नाम 'जाहर
पीर' ई है अर उत्तरप्रदेस में इणी नाम सूं पुजीजै।हिन्दुवां में तौ अै
पूज्या जावै ई, मुसलमान ई इणां री पूजा करै।
गोगा रौ इतियासिक वृत्त कांई रैयौ?- इण बाबत लोक-मानस कैई परवा नीं करी, वै
तौ उणां नै सांपां रा देवता मान'र पूजता रैया। गोगा रौ सांपां रै साथै
कांई रिस्तौ हौ अर वौ रिस्तौ कीकर हुयौ?- इण बाबत कोई प्रमाण उपलब्ध नीं
है। पण गोगा रै संबंध में जित्तौ ई साहित्य मिलै, उणमें उणां रौ रिस्तौ
किणी-न-किणी रूप में सांपां सूं बतायौ गयौ है अर लोक में औ विसवास घणौ
प्रबल है के गोगाजी रै हुकम बिना सांप किणी नै ई नीं काट सकै। आ ई वजै के
आपणै अठै 'गाम-गाम गोगौ नै गाम-गाम खेजड़ी', मतलब 'गाम-गाम खेजड़ी रै रूंख
हेठै गोगाजी रौ थान हुवै'।
गोगा रै सांपां सूं संबंध बाबत 'अेनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' सूं
फ्लूटार्क रौ औ हवालौ देवणौ ई अठै काफी हुवैला के- " पुराणै जमानै रा लोग
वीरां रौ संबंध सांपां सूं ई खास तौर सूं दिखाया करता हा, किणी दूजै सूं
इत्तौ नींं।"
गोगा अेक इतियासिक पुरुष हा। आपरै देस अर धरम री रक्षा करता थका वीरता रै
साथै आपरा प्राण निछावर करण वाला गोगा 11 वीं सदी में हुया हा अर वै महमूद
गजवनी रें समसामयिक हा।
'क्यामखां रासौ' रै मुजब गोगा घांघू बसावण वालै घंघराणा री 5 वीं पीढ़ी में
हुया हा। माघ सुदी 14 वि.सं. 1273 रौ अेक अभिलेख राणा जैतसी रै जमानै रौ
ददरेवा में मिल्यौ। राणा जैतसीरी 7वीं पीढ़ी में करमचंद हुयौ हौ जिणनै बादसा
फिरोजशाह तुगलक (वि.सं. 1408-45) मुसलमान बणायौ हौ। आं करमचंद अर जैतसी रै
तै बगत सूं गणना करियां गोगा रौ बगत 11 वीं सदी ई आवै। इण बात री पुष्टि
ददरेवा रै बराबर चालण बाली छापर द्रोणपुर री मोहिल शाखा रै वंशक्रम, जिकौ
के नैणसी दियौ है, अर उणरै राणावां रै मिल्यै अभिलेखां सूं ई हुवै। अठै याद
राखणजोग बात आ है के आ शखा घांघू बसावण वालै घंघराणा रै बेटै इंद सूं ई
अलग हुई।
सन् 1409 रै लगै-टगै रच्योडै 'श्रावकव्रतादि-अतिचार' नाम ुजराती ग्रंथ रै
अलावा 'मंत्री यशोवीर प्रबंध' सूं साफ ठा पडै़ के वां जमानां में गोगा री
मानता चौफेर फैल चूकी ही अर पूजा ठोस रूप धारण कर चूकी ही।
गोगा रै चरित में अरजन-सरजन री भूमिका अेक खास मैतव
राखै। अरजन-सरजन सूं गोगाजी रै घरा अर घन रै कारण कलै रैवती ही। इण मुजब
अरजन-सरजन इणां रै खिलाफ मुसलमांनां री फौज लाय'र गोगाजी री गायां घेर लीी.
तद उणां रौ गोगाजी सूं जु्दध हुयौ। इणमें अरजन-सरजन रै साथै ई कैयौ जावै
गोगाजी ई वीरगति पायी अर इणां री जोड़ायत मेनल सती हुयी। लोक साहित्य अर
किंवदंतियां मुजब जोड़ भाई अरजन अर सरजन गोगा रा मासियात भाई हा। वै खुद नै
पद में बड़ा मानता थका गोका रै पाट बैठण रौ विरोध करियो हौ अर जुद्ध में
गोगा रै हाथां मारया गया हा। कथानक इण भांत है-
ददरेवा रै राणा उमर (अमरा) रै बेटै जेवर रौ ब्याव बाझल रै साथै हुयौ हौ, अर
बाछल री अेक बैन आछल ई इणी परिवार मांय परणाईजी ही। पण लंबै बगत तांई जेवर
रै कोई औलाद नीं हुया वौ घणौ दुखी रैवतौ हौ। किणी महातमा रै कैयां सूं
जेवर ददरेवा मांय नौलखौ बाग लगवायौ अक अेक कूवौ खुदवायौ। पण जेवर रै बाग
मांय बड़तां ई बाग सूखग्यौ अर कूवै रौ पाणी खारौ हुयग्यौ। किणी जोतसी रै
कैयां राणी बाछ गुरु गोरखनाथ री आराधना मन लगाय'र करण लागी। गोरखनाथ नै जद
योग-बल सूं बाछल री सेवा री जाणकारी हुई तौ वै आपरै चवदै सौ चेलां रै साथै
दरदेवा आया। उणां रै आवतां ई नोलखौ बाग हरियौ हुयग्यौ अर कूवै रौ पाणी
मीठौ। बाछल गुरु गोरखनाथ री घणी सेवा करी। पण जद वरदान देवण रौ समौ आयौ, तौ
आछल आपरी बैन बाछ रा कपड़ा पैर'र गोरखनाथ री सेवा मांय हाजर हुयगी। गोरखनाथ
उणनै इज दो पुत्र हुवण स्वरूप दो जउ प्रसाद-स्वरूप देय'र आसीरवाद देय दियौ
अर पछै आपरौ धूणौ कलेस हुयौ अर वा गोरखनाथ रै लारै-लारै सिद्धमुख गई। उठै
वा पाछी उणां री आराधना करी तौ वै उणनै गूगल रूपी हव्य प्रसाद-स्वरूप दियौ
अर कैयौ के इमसूं थारै जिकौ बेटौ हुवैला, वौ उण दोनां सूं बलशाली हुवैला।
राणी घरै आय'र गूगल रौ कीं हिस्सौ आपरी बांझ पुरोहिताणी नै यिौ, जिणसूं
महावीर 'नरसिंघ पांडे' रौ जनम हुयौ। कीं हिस्सौ दासी नै दियौ, जिणसूं भज्जु
कोतवाल रौ जनम हुयौ। कीं हिस्सौ घोड़ी नै दियौ, जिणसूं 'लीलौ बछेरौ' जनमियौ
अर बाकी खुद बाछल लेय लियौ, जिण सूं गोगा रौ जनम हुयौ। मोट्यार हुयां गोगै
रौ ब्याव राजा सिंझा री पुत्री सिरियलदे रै साथै हुयौ। पण गोगौ जद ददरेवा
री राजगादी माथै बैठियौ तौ आछल रा दोनूं पुत्र अरजन-सरजन गोगाजी सूं झगडौ
करियौ, पण जुद्ध मांय मार्या गया। चूरू जिलै रौ गाम जोड़ी जोड़ भाइयां रौ
ठिकाणौ।
गोगाजी संबंधी लोक-प्रचलित, कथानक मुजब गोगा रौ जनम
गुरु गोरखनाथ रै प्रसाद अर आसीरवाद रै फलस्वरूप हुयौ हौ अर लोक साहित्य
मांय तौ गोगा अर गोरखनाथ रै मिलण री बात घणी चावी है ई, इतियासिक दीठ सूं ई
गोगा अर गोरखनाथ समसामयिक लागै। गोरखनाथ रौ बगत विक्रम रौ 11 वौं सईकौ है
अर औ ई बगत चौहाण राणा गोगा रौ ई। सो दोनां रै मिलण री संभावना तौ अणूंती ई
है। नोहर रै कनै ई गाम गोगामैड़ी मांय गोगाजी री समाधि है। समाधि सूं थोड़ी ई
दूरी माथै गोगाणौ तलाव अर गोरखाणौ टीलौ है जिकौ गोरखनाथ रै घूणै रै रूप
में पुजीजै। अैड़ी बात चावीहै के गोरखनाथ अठै तपस्या करी ही।
महमूद गजनवी भारत माथै केई बार हमला कर्या हा। उणरै बार-बार रै हमलां सूं
भारत नै अणमाप नुकसाण उठावणौ पड्यौ हौ। गोगा जद देख्यौ के अठै रै लोगां रै
धरम अर सम्मान माथै आंच आय रैयी है तौ वै मर-मिटण री तेवड़'र उण खूंखार
हमलावर रै खिलाफ आतम-अभियान रै साथै जुद्ध रै मैदान मांय उतर पड्या अर
पराक्रम सूं जूझता थकां आपरै पेटां, सगा-संबंधियां अर सैनिकां समेत वीरगति
नै प्राप्त हुया।
आखै राजस्थान मांय तौ गोगाजी री पूजा हुवै ई है, इणरै अलावा हरियाणा,
पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश अर गुजरात इत्याद प्रांतां ई
गोगाजी री मान्यता है। मुसलमानां तकात में गोगाजी री मान्यता रैयी है।
राजस्थान रै गाम-गाम मांय गोगाजी रा थान खेजड़ी रै रूंख हेठै मिलै। गोगाजी
री मैड़ियां ई केई मिलै, पण उणां में दो खास मानीजै- अेक तौ चूरु जिलै री
राजगढ तैसील रै गाम ददरेवा मांय जठै गोगा राणा री राजधानी ही। इण मैड़ी नै
'शीश मैड़ी' कैयौ जावै। दूजी मैड़ी 'गोगामैड़ी' नाम रै गाम मांय है, जिणनै
'धुर मैड़ी' कैवै। औ गाम हनुमानगढ़ जिलै री नोहर तैसील मांय आयौ थकौ है।
मैड़ी रै मांय गोगाजी री समाधि है। ददरेवा अर गोगामैड़ी रै अलावा ई अनेक
स्थानां माथे मेला लागै। कठैई भादवै वदी 9 नेै, तौ कठैई भादवै सुदी 9 नेै।
गोगा नाम रे दिन धरां मांय खीर, चूरमौ अर धूधरैदार पूवा बणाया जावै। इण दिन
बिलवणौ नीं करीजै। भगत लोक पूरै भादवै रै महीनै मांय व्रत-उपवास करै।
गोगाजी रेै नाम सूं मनौतियां मनाईजै अर गोगाजी रा रातीजोगा दिरीजै। गोगाजी
नै नालेर घणा चढाईजै। भगत लोग गलै मांय नाल पैरै। कीं जातियां में गोगा नम
नै
बिना बूझिया सावा हुवै। कठैई-कठैई कुम्हार लोग घुड़सावर गोगाजी री मूरती
बणाय'र घरां मांय लावै अर घर वाला उणरी पूजा करै। www.dadrewagogaji.blogspot.in
आपणों राजस्थान से संभार !
|
बुधवार, 19 सितंबर 2012
गोगाजी चौहान
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
जाहरवीर श्री गोगा जी की कथा
https://www.youtube.com/watch?v=lMz4iz6vpFI
भगतजी; जय गोगादेव;
गुरू गोरक्षनाथजी द्वारा प्रदत्त गुगल की दिव्य जड़ी से पाँच वीरों के जन्म का इतिहास जग विख्यात है । उन पाँच वीरों में आपने चार वीरों का उल्लेख यहाँ पर किया है; लेकीन पांचवे वीर रतनसिंह चाँवरीया को आप ने केवल निम्न जाती का होने के कारण सहजता पूर्वक भुला दिया । क्या सच्चे इतिहास के प्रती यही आपकी प्रामानिकता है । जिस महाबली वीर रतनसिंह ने वीर गोगाजी महाराज और अपने देश-धर्म पर अपना सर्वस्व लुटा दिया; उन्हे आप इतिहास से दुर करना चाहते हो या गोगाजी महाराज से । सिद्ध जती वीर रतनसिंह गुगल से उत्पन्न गुरू गोरक्षनाथजी का कृपाप्रसाद है; इस नाते वे गोगाजी महाराज के गुरूबंधु के स्थान पर प्राकृतीक रूप से जुड़े है । उन्हें गोगाजी महाराज से दुर करने की चेष्टा करना व्यर्थ है । जो ये अतर्क, अनिति जातिवाद से युक्त घृणित कर्म करेगा; इसका घोर परिणाम पिढी दर पिढी भुगतेगा; क्योंकी वीर रतनसिंह निम्न जाती के होते हुवे भी निम्न ना रहे बल्की वे अपने महा पराक्रम के बलबूते पर श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा पाँच वीरों में स्थापित बलिदानी वीर के स्थान विशेष पर सुसज्जीत है । इसी वजह से वीर गोगाजी महाराज ने संजीवन समाधी से पुर्व वीर रतनसिंह के पिताश्रेष्ठ श्री श्यामबाबा चाँवरीया को दिव्य धर्मध्वजा स्वरूप निशान देकर अपनी पूजा करने का सम्मान स्वरूप गौरव प्रदान किया तथा वीर रतनसिंह और स्वयं में कोई भेद या जातिवादिता नहीं होने का प्रामाणिक उदाहरण सनातनी जनमानस के समक्ष प्रस्तुत रखा है । इस महान कर्म के द्वारा गोगाजी महाराज सवर्ण कुलगोत्र के होते हुवे भी उन्होने स्वयं अपने आप को अनगिनत जातियों मे स्थापित वीर तथा पीर स्वरूप बाँट दिया है; या फिर युँ भी केह सकते है की संजीवन समाधी के पश्चात इस अनंत ब्रम्हांड में लिन होकर अंनतानंत हो गये । साथही गोगाजी महाराज के पावन व्यक्तित्व के मद्देनजर एक बात केहने योग्य यह भी है की सत्य स्वरूप सनातन धर्म वास्तव में बुरा नहीं है; बुराई तो सनातनी विचारधारा को मानने वालो की सोच में है; जो जातियों के आधार पर किसी की श्रेष्ठता तथा योग्यता को अनदेखा करते है जबकी सुन्दर विचारधारा तो सृष्टी की कर्मप्रधानता अनगिनत अवतारों, वेदों तथा पुराण आदी शाश्त्रों के माध्यम से बारम्बार धर्म की सनातनी सुंदरता को व्यक्त करते रहे है ।
एक टिप्पणी भेजें